खुदा हुमको एैसी खुदाई ना दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई ना दे
" में अकेला ही चला था जानिब मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया !"
- आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;
...
रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;
कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ;
कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;
तू आगे चल में आता हु, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ;
आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;
कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ;
कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;
तू आगे चल में आता हु, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ;
आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।
Is Tapte bhookhand par
(On this burning land)
Odthe garam reth ke beech
(Amidst the sand blowing)
Jab mein jhukoon nal par
(When I bend at the tap)
O meri pyaas
(Oh my thirst)
Mujhe dena thaakath
(Give me the strength)
Piyoon tho ek chula kam
(If i drink, let me drink a mouthful less)
Ki yaad rahe doosron ki pyaas bhi
(That I may remember the thirst of others too)
O meri bhook
(Oh my hunger)
Mujhe mat karna kamzor
(Do not weaken me)
Khaaoon tho ek kaud kam
(If i eat, let me eat a mouthful less)
Ki yaad rahe doosron ki bhook bhi
(That I may remember the hunger of others too)
O mere neend
(O my sleep)
Soouon tho ek peher kam
(If i sleep let me sleep some hours less)
Ki yaad rahe raat raat bhar khatkar kaam karne waale kaamgaron ke liye
(That i may remember the workers working through the whole night)
Ho saktha hai yeh mangal kaamanaayein
(It is possible that these thoughts may)
Prithvi ki doosre chor par ladkhadaathe kisi maanav ko thaam le
(Reach a person struggling on the other side of the world)
Aur use thaakhat de
(And give him strength)
Ho saktha hai yeh kisi kaam ki na ho
(It is possible that these are of no use)
Lekin is tharah mein khud ko kar sakoon maaf
(But in this manner I can forgive myself)
Jiyoon ek aisa janam ki pareshan na karoon
(Let me live a life which does not hurt)
Doosre janam ki aasha
(the wishes of another life )
जो बीत गई सो बात गई ( Jo Beet Gayi So Baat Gayi)
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया...
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया...
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई.
---हरिवंश राय 'बच्चन'
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई.
---हरिवंश राय 'बच्चन'
कभी नहीं जो ताज सकते है, अपने न्यायोचित अधिकार,
कभी नहीं जो सह सकते है, शीश नवा कर अत्याचार,
एक अकेले हो या उनके साथ खड़ी हो भरी भीड़,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
...
कभी नहीं जो सह सकते है, शीश नवा कर अत्याचार,
एक अकेले हो या उनके साथ खड़ी हो भरी भीड़,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
...
निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार,
जिनके जिव्हा पर होता है उनके अंतर का अंगार,
नहीं जिन्हें चुप कर सकते है, आतातयियो की शमसीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता,
ऊचे से ऊचे सपनो को देते रहते जो न्योता,
दूर देखते जिनके पैनी आँख भविष्यत् का तमाचिर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जो अपने कंधो से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते है,
पथ के बढ़ो को जिनके पाओ चुनौती देते है,
जिनको बांध नहीं सकती है लोहे की बेडी जंजीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जो चलते है अपने छप्पर के ऊपर लुका धर कर,
हर जीत का सौदा कटे जो प्राणों की बाजी पर,
कूप उद्ददे में नहीं पलट कर जो फिर ताका करते तीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जिनको ये अवकाश नहीं है देखे कब तारे अनुकूल,
जिनके ये परवाह नहीं है कब भद्र कब दिक्शूल,
जिनके हाथो की चाबुक से चलती है उनकी तक़दीर ,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
तुम हो कैन कहो जो मुझसे सही गलत पर्थ लोटो जान,
सोच सोच कर पुच पुच कर बोलो कब चालता तूफ़ान,
सरथ पर्थ वोह है जिसपर अपनी चलती ताने जाते वीर ,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
---हरिवंश राय 'बच्चन'
जिनके जिव्हा पर होता है उनके अंतर का अंगार,
नहीं जिन्हें चुप कर सकते है, आतातयियो की शमसीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता,
ऊचे से ऊचे सपनो को देते रहते जो न्योता,
दूर देखते जिनके पैनी आँख भविष्यत् का तमाचिर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जो अपने कंधो से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते है,
पथ के बढ़ो को जिनके पाओ चुनौती देते है,
जिनको बांध नहीं सकती है लोहे की बेडी जंजीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जो चलते है अपने छप्पर के ऊपर लुका धर कर,
हर जीत का सौदा कटे जो प्राणों की बाजी पर,
कूप उद्ददे में नहीं पलट कर जो फिर ताका करते तीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
जिनको ये अवकाश नहीं है देखे कब तारे अनुकूल,
जिनके ये परवाह नहीं है कब भद्र कब दिक्शूल,
जिनके हाथो की चाबुक से चलती है उनकी तक़दीर ,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
तुम हो कैन कहो जो मुझसे सही गलत पर्थ लोटो जान,
सोच सोच कर पुच पुच कर बोलो कब चालता तूफ़ान,
सरथ पर्थ वोह है जिसपर अपनी चलती ताने जाते वीर ,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.
---हरिवंश राय 'बच्चन'
Madad karni ho uski,
Yaar ki dharas bandhana ho,
Bahut derina raston par,
Kisi se milne jaana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Yaar ki dharas bandhana ho,
Bahut derina raston par,
Kisi se milne jaana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Badalte mausamon ki sair main,
Dil ko lagana ho,
Kisi ko yaad rakhna ho,
Kisi ko bhool jaana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Dil ko lagana ho,
Kisi ko yaad rakhna ho,
Kisi ko bhool jaana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Kisi ko maut se pehle,
Kisi gham se bachana ho,
Haqiqat aur thi kuch,
Uss ko ja ke ye batana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Kisi gham se bachana ho,
Haqiqat aur thi kuch,
Uss ko ja ke ye batana ho,
Hamesha der kar deta hun main.
Muneer Niazi
उठी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चांद औ' तारे,
उठा तूफान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे,
मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?...
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
'Yamaraj do baar nahin kanth dhartha hai,छिपे सब चांद औ' तारे,
उठा तूफान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे,
मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?...
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
गगन में गर्व से उठउठ,
गगन में गर्व से घिरघिर,
गरज कहती घटाएँ हैं,
नहीं होगा उजाला फिर,
मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
तिमिर के राज का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होनें सिर झुकाया है,
मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आई,
मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रभंजन, मेघ दामिनी ने
न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबित नहीं छोड़ा,
मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रलय की रात में सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर पड़ प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,
किसी के पथ में पलकें बिछाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
- बच्चन
गगन में गर्व से घिरघिर,
गरज कहती घटाएँ हैं,
नहीं होगा उजाला फिर,
मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
तिमिर के राज का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होनें सिर झुकाया है,
मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आई,
मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रभंजन, मेघ दामिनी ने
न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबित नहीं छोड़ा,
मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
प्रलय की रात में सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर पड़ प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,
किसी के पथ में पलकें बिछाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
- बच्चन
Martha hai jo ek baar hi martha hai' ...
Kabir:
चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए
We all are caught in the all natural phenomenon of dualities: day and night, life and death, joys and sorrows, thereby making life forever in motion (Chalti Chakki) and an ever changing process. Trapped in this duality, whatever we see is perishable. Nothing that we comprehend is eternal.
चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए
We all are caught in the all natural phenomenon of dualities: day and night, life and death, joys and sorrows, thereby making life forever in motion (Chalti Chakki) and an ever changing process. Trapped in this duality, whatever we see is perishable. Nothing that we comprehend is eternal.
Disciple of Guru
Kabir Das (Kamala) Replied about this Doha as under:-
चलती चक्की देखकर कमाला दिया थटाये
जो दाना किल को लगे वो साबुत बच जाय
Kamala cheers looking at grinding stones. One who attached himself with Center (Pivot/ the inner self or soul) never perished.
चलती चक्की देखकर कमाला दिया थटाये
जो दाना किल को लगे वो साबुत बच जाय
Kamala cheers looking at grinding stones. One who attached himself with Center (Pivot/ the inner self or soul) never perished.
sabse unchi prem sagaai
duryodhana ko meva tyagyo saag vidur ghar khai
sabse unchi...
juthe phal sabri ke khaaye
bahu vidi swada batayi
sabse unchi prem ....
prem ke bas arjun rath hakyo
bhool gaye thakurai
sabse unchi prem ...
aisi preet barhi vrindavana
gopin naach nachaai sabse unchi ....
sur kroor is laayak nahi
kah lag karehu badhai
hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
hare rama hare rama rama rama hare hare
duryodhana ko meva tyagyo saag vidur ghar khai
sabse unchi...
juthe phal sabri ke khaaye
bahu vidi swada batayi
sabse unchi prem ....
prem ke bas arjun rath hakyo
bhool gaye thakurai
sabse unchi prem ...
aisi preet barhi vrindavana
gopin naach nachaai sabse unchi ....
sur kroor is laayak nahi
kah lag karehu badhai
hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
hare rama hare rama rama rama hare hare
Meaning -
Supreme is the bond of love .
for love ... lord left the high defined food (full of dry fruits)of duryodhana and ate simple food (herbs) at Vidur's home .
The lord ate already tasted food of mata Sabari and said it to be the tastiest .
Under the effect of love drove the chariot of Arjun
he forgot his supremity .
such a love arose in Vrindavan that he danced with the gopis .
Sur das ji says that he is harsh enough to praise the lord .
for love ... lord left the high defined food (full of dry fruits)of duryodhana and ate simple food (herbs) at Vidur's home .
The lord ate already tasted food of mata Sabari and said it to be the tastiest .
Under the effect of love drove the chariot of Arjun
he forgot his supremity .
such a love arose in Vrindavan that he danced with the gopis .
Sur das ji says that he is harsh enough to praise the lord .
जब 'मैं' था तब हरि नहीं, जब हरि था तब 'मैं' नहीं।
प्रेम गलि अति साँकरी, ता में दो न समाय।।
Kabir
प्रेम गलि अति साँकरी, ता में दो न समाय।।
Kabir
गांधी हो याग़ालिब हो
खत्म हुआ दोनो का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न
खत्म हुआ दोनो का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न
खत्म करो तहज़ीब की बात, बंद करो कल्चर का शोर
सत्य, अहिंसा सब बकवास, तुम भी कातिल हम भी चोर
सत्य, अहिंसा सब बकवास, तुम भी कातिल हम भी चोर
खत्म हुआ दोनो का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न
वह बस्ती वह गांव ही क्या, जिसमें हरिजन हों आज़ाद?
वह कस्बा, वहशह रही क्या, जोना बना अहमदाबाद?
वह कस्बा, वहशह रही क्या, जोना बना अहमदाबाद?
खत्म हुआ दोनो का जश्न
आओ, इन्हेंअब कर दें दफ़्न
आओ, इन्हेंअब कर दें दफ़्न
गांधी हो या ग़ालिब हो दोनों का क्या काम यहां
अब केबर सभी क़त्ल हुई एक की शिक्षा, एक की ज़बां
अब केबर सभी क़त्ल हुई एक की शिक्षा, एक की ज़बां
खत्म हुआ दोनो का जश्न
आओ , इन्हें अब कर दें दफ़्न
आओ , इन्हें अब कर दें दफ़्न
Sahir penned this poem it in
1970 after Official Centenary Celebrations for Mahatma Gandhi (100th Birth
Anniv) and Mirza Ghalib (100th Death Anniv - thanks Nikhil Kumar for the
pointer) both got over. Still very very contemporary..
"हमारे पास जो नहीं है
उसके प्रति आकर्षण है,
और हमारे पास जो है,
उसके प्रति विकर्षण,
तृष्णा.....और....तृप्ति,
तो नदी के दो किनारे है"
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